कई सदियों से नदी में सिक्का डालने की परंपरा चली आ रही है… जानिए क्या है इसके पीछे का सच

दुनिया में न जाने कितने धर्म एवं जातियां है। हर धर्म ने दान को महत्त्व दिया है। ना सिर्फ हिन्दू धर्म बल्कि पाश्चात्य धर्म में भी दान करने के नियम बनाए हुए है। ऐसा माना जाता है कि धर्म हमें ईश्वर का रास्ता दिखता है। ऐसा करने से आप पुण्य कमाएंगे एवं आपका जीवन सुखद होगा।

हमारे देश में चली आ रही ऐसी कई परम्पराएं है जिन्हे लोग अंधविश्वास का नाम देते है। और कई लोग ऐसे भी हैं जो इन परम्पराओ को मानते है एवं उसमे विश्वास रखते है। आज हम आपको सदियों से चली आई ऐसी ही एक परंपरा के बारे में बताने जा रहे है। हम बात करेंगे नदी में सिक्का डालने कि परंपरा के बारे में।

आपने ध्यान दिया होगा कि हम अक्सर नदी के किनारे से गुजरते वक़्त उसमे एक सिक्का डालते है। चाहे फिर चलती ट्रैन में नदी के ऊपर से गुज़ारना हो या किसी पुल के ऊपर खड़े हो। ये कोई अंधविश्वास नहीं है। इसके पीछे एक वजह है।

दरअसल बात कुछ ऐसी है कि पुराने समय में ताम्बे के सिक्के हुआ करते थे। माना गया है कि ताम्बा जल को शुद्ध करता है। लोग नदी में ताम्बे का सिक्का इसी मकसद से डालते थे कि नदी का जल शुद्ध रहे। यह जल सेहत के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है।

आजकल हमे ताम्बे का सिक्का देखने नहीं मिलता लेकिन बरसों से चली रही इस प्रथा को लोगों ने जारी रखा है।

आजकल ज्योतिषों का कहना है कि जल में सिक्के एवं पूजा सामग्री प्रवाहित करने से हमारे दोष कटते हैं। यह एक तरह से दान का रूप भी ले लेता है क्योंकि नदी के किनारे बैठे गरीब बच्चों को सिक्के का मिलना जैसे दान ही तो है।

ज्योतिषों का यह भी कहना है कि यदि आप नदी में चाँदी का सिक्का प्रवाहित करें तो आपका चंद्र दोष दूर हो जाएगा।

Sachin

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