गुजरात की एक गुफा में रहने वाले 90 वर्षीय बाबा प्रह्लाद जानी के एक दावे ने सनसनी फैला दी। माँ अम्बे के उपासक बाबा का कहना है कि माता की अनुकम्पा से वे पिछले 78 वर्षों से बिना अन्न-जल ग्रहण किए भी जीवित है। स्त्री वेश-भूषा में रहने वाले इस बाबा को लोग चुनरी वाला माताजी कहकर भी सम्बोधित करते हैं।
दैविक चमत्कार या पाखण्ड, तहकीकात के क्या आए नतीजे?
अहमदाबाद स्थित स्टर्लिंग हॉस्पिटल ने इस दावे की सच्चाई जाँचने का बीड़ा उठाया और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ सुधीर साहा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया। इस टीम ने बाबा प्रह्लाद जानी को 10 दिन तक एक बंद कमरे में अपनी निगरानी में रखा। इस दौरान बाबा ने न तो कुछ खाया-पीया और न ही मल-मूत्र का त्याग किया।
मेडिकल टीम की रिपोर्ट की सर्वत्र आलोचना होने लगी और 2010 में इसी मेडिकल टीम ने दोबारा इस दावे की जांच करने का फैसला किया। इस प्रेक्षण मूलक अद्यय्यन को संचालित करने में इस बार इंडियन डिफेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज (DIPAS) की 35 सदस्यी टीम भी इस तहकीकात में जुट गयी। CCTV कमरों की सहायता से बाबा पर कड़ी निगरानी राखी गयी। इस बार जल का प्रयोग सिर्फ कुल्ला करने तथा नहाने तक ही सीमित रखा गया तथा शौचालय को पूरी तरह सील कर दिया गया। 15 दिनों के बाद इन दोनों टीमों ने बाबा के स्वस्थ शरीर पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए किसी चमत्कारी दैविक शक्ति के होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया।
वैज्ञानिकों का मत!
हॉर्वर्ड हुमानिटरियन इनिशिएटिव के डायरेक्टर डॉ माइकल वैन रूवेन ने इसे असंभव करार देते हुए इस दावे को एक सिरे से खारिज कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के मशहूर पोषाहार शोधकर्ता पीटर क्लिफ्टन ने भी भारतीय जांचकर्ता की तहकीकात को झूठ का पुलिंदा बताया क्योंकि अन्न-जल के बिना लम्बे समय तक जीवित रहने के तर्क से वे सहमत नहीं है। भारतीय तर्कवादी लेखक सनल एडामरुका ने भी इस जांच को सफ़ेद झूठ बताया।उनका कहना है कि उन्हें निरिक्षण वाले स्थान पर जाने की अनुमति नहीं दी गयी तथा जब उन्होंने CCTV फुटेज देखा तो पाया कि बाबा के नहाने तथा कुल्ला करने की प्रक्रिया को अपर्याप्त निगरानी दी गयी।
इस तरह वैज्ञानिकों ने इस दावे तथा उसकी जांच को पूरी तरह झूठ बताया है पर यह भी सच है कि दुनिया में कई अजूबे देखे गए है जिन पर विज्ञान निरुत्तर है। ऐसे में यह दावा भी एक रहस्य से कम नहीं है।