सफलता किसे अच्छी नहीं लगती? हर व्यक्ति सफलता पाने के लिए ही परिश्रम करता है। यह जग जाहिर बात है की आजकल सफलता प्राप्त होते ही लोगों को स्वयं का गुणगान करना उनका परम कर्त्तव्य प्रतीत होता है। क्या कभी ऐसा हुआ है की आपने कुछ हासिल किया हो और आप उसके पश्चात चुप रहे हो? 😀
रामायण के सुंदरकांड में हमें बहुत सी बातें सीखने को मिलती है जिनमे से एक है सफलता के बाद हमें क्या करना चाहिए। हनुमान जी हमें बताते है की व्यक्ति को सफलता प्राप्त होने के बाद चुप रहना चाहिए। हमें दुसरे व्यक्ति को हमारा गुणगान करने देना चाहिए क्यूंकि ऐसा करने से सफलता और अद्भुत प्रतीत होती है और मन को शान्ति मिलती है।
हनुमान जी ने जब लंका में आग लगाकार हाहाकार मचा दिया था तब वे प्रभु श्री राम के पास लौट कर पूरी घटना का वर्णन उनसे कर सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। सीता मैया तक अंगूठी पहुंचाने से लंका के विनाश तक की पूरी घटना श्री राम को जामवंत ने सुनाई।
नाथपवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनयके चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई इस चौपाई का अर्थ है: जामवंत ने प्रभु श्री राम से कहा की “हे प्रभु हनुमान ने ऐसा वीरता भरा कार्य किया है की हज़ार मुखों से भी उनका वर्णन करना मुश्किल है।” इसके पश्चात जामवंत ने वीर हनुमान की गाथा प्रभु को सुनाई।
सुनतकृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।
हनुमान जी की सफलता की गाथा सुनते ही श्री राम ने उन्हें अपने पावन मन में स्थान दे दिया और अपने प्रिय हनुमान को गले से लगाया। क्या इससे बड़ा पुरस्कार हनुमान जी के लिए कुछ और हो सकता था?
हमें इन ऐतिहासिक पुराणों से प्रेरित होकर अपने जीवन में बदलाव लाना चाहिए। क्या आपको ऐसा नहीं लगता है?