श्री कृष्ण को इस श्राप से बचाया था सुदामा ने और सारी ज़िन्दगी रहे थे गरीब – ये होती है मित्रता

Sachin
By Sachin

हम सभी मित्रता को बहुत महत्व देते हैं कई बार तो अपने दोस्त के लिए हम कई तरह की क़ुरबानी देने को भी तैयार हो जाते हैं लेकिन क्या आपने कभी ऐसा सोचा है की अपने दोस्त के लिए दरिद्रता को अपना ले ? आज हम आपको एक ऐसी ही लीला के बारे में बताएंगे जो हमे अंदर तक झकझोर कर रख देगी और ये बताएगी की असल में अमीर होना केवल धन अर्जित करना और बहुत जायदात होना ही नहीं है बल्कि अमीर तो वो होता है जो प्यार करे और प्यार जीते, समर्पण करे। हम सभी ये बात जानते हैं की श्री कृष्ण द्वारकाधीश थे मगर फिर भी उनका दोस्त सुदामा बेहद गरीब था पर उसके पीछे क्या कारण था हम आज आपको बताएंगे।

एक श्राप की वजह से था ऐसा

दरअसल एक बहुत ही गरीब ब्राह्मणी थी जो भगवान वासुदेव की भक्त थी और उनका भजन कर अपना गुज़र बसर किया करती थी। उसको जो भी भिक्षा में मिलता वो उसको भगवान् को भोग लगाकर खा लिया करती थी। एक बार वो 4 दिन से भूखी थी उसको भिक्षा में कुछ भी नहीं मिला था तब भी वो भजन कर और पानी पी कर ही अपने दिन निकाल रही थी। तब कही पांचवे दिन उसको किसी ने भिक्षा में कुछ चने दिए जो उसने एक पोटली में बाँध दिए की सुबह वासुदेव को भोग लगाकर खा लुंगी।

ब्राह्मणी ने दिया श्राप

उसी रात उस ब्राह्मणी के घर कुछ चोर घुस आये उन्होंने वहां एक पोटली पड़ी देखि और उन्हें लगा की शायद इसमें कुछ बहुमूल्य सामान होगा इसलिए वो उसको चुरा कर भाग गए। इसके बाद वो लोग पहुंचे संदीपन ऋषि के आश्रम में और वहां पर आहट होने पर संदीपन ऋषि की पत्नी जाग गयी ,चोर इस डर से की कही वो पकडे न जाए जल्दी में वो पोटली वही छोड़ कर वहां से भाग निकले। जब ब्राह्मणी ने देखा की उसके चने चोर चुरा कर ले गए हैं तब उसने भूख से व्याकुल होकर श्राप दे दिया की जो भी उस चनों को खायेगा वो मेरी तरह ही हमेशा के लिए दरिद्र रहेगा और उसको भी मेरी तरह कई दिनों तक भोजन नहीं मिलेगा।

सुदामा ने बचाया कृष्ण को

उधर अगले दिन संदीपन ऋषि और उनकी पत्नी ने देखा की इस पोटली में तो चने हैं जो उन्होंने कृष्ण तथा सुदामा को लकड़ियां लेने जाते हुए खाने के लिए दे दी कहा कि दोनों बाँट के खा लेना।। सुदामा भी एक तपस्वी ब्राह्मण थे इसीलिए उनको पोटली हाथ में पकड़ते ही श्राप के बारे में ज्ञात हो गया था इसीलिए उन्होंने अकेले ही सारे चने खा लिए और और कृष्ण के मांगने पर भी चने कृष्ण को खाने नहीं दिए। और इस तरह, कृष्ण को उस श्राप से मुक्त कर दिया और सारा श्राप खुद स्वीकार कर लिया।

ऐसा प्रेम था सुदामा का श्री कृष्ण से जो हम केवल सुन सकते हैं कभी समझ नहीं सकते की इन दोनों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था।

Share This Article
By Sachin
नमस्ते! मैं सचिन, हिंदी ब्लॉगिंग जगत में एक समर्पित लेखक और कंटेंट क्रिएटर हूँ। ब्लॉगिंग के माध्यम से, मैं अपने विचार, अनुभव और ज्ञान को आप सबके साथ साझा करने का प्रयास करता हूँ। मेरी लेखनी का उद्देश्य न केवल जानकारी प्रदान करना है, बल्कि समाज में जागरूकता और सकारात्मक परिवर्तन लाना भी है। मेरे ब्लॉग विभिन्न विषयों को कवर करते हैं, जिनमें यात्रा वृतांत, सामाजिक मुद्दे, साहित्य समीक्षा और तकनीकी टिप्स शामिल हैं। सरल और स्पष्ट लेखन शैली के माध्यम से, मैं अपने पाठकों के साथ एक मजबूत संबंध स्थापित करने का प्रयास करता हूँ। मेरा विश्वास है कि हिंदी भाषा में उच्च गुणवत्ता की सामग्री उपलब्ध कराना बेहद महत्वपूर्ण है, और इसी दिशा में मैं निरंतर कार्यरत हूँ।